लखनऊ।
एक समय था जब मुलायम सिंह यादव के जीते जी समाजवादी पार्टी की जमकर छीछालेदर हुई थी। वजह थे युवराज अखिलेश यादव, कम समझ और सियासी अपरिपक्वता ने उस समय अखिलेश यादव के हाथों गुनाह – ए – अजीम करवा दिया। खुद के हाथों अपने पिता और चाचा की बेइज्जती करने के साथ ही अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी को दो खेमों में बाँट दिया। अखिलेश यादव की इस नादानी का भरपूर फायदा उठाया भाजपा ने और अखिलेश यादव को पटखनी देते हुए सूबे में सरकार कायम कर ली। जब सत्ता का साथ और अपनों का हाथ छूटा तब छूटा अखिलेश यादव के माथे पर पसीना। उसके बाद अखिलेश यादव ने सबसे पहले काबू किया अपना बड़बोलापन और फिर से जुट गए सपा को एकजुट करने में। अपनों को मनाया, रूठे हुए को गले लगाया और पूरी ताकत से जोरदार धमाका किया 2024 के लोकसभा चुनाव में।
अब बात कर लेते हैं भाजपा के पतन की, सत्ता में दुबारा वापसी के बाद भाजपा के नेताओं का दिमाग तो सातवें आसमान पर पहुँच गया लेकिन नैतिकता और समरसता आ गयी घुटने के नीचे। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की लगातार अनदेखी, पार्टी के बड़े सिपहसालारों में आपसी कलेश और एक दूजे को नीचे दिखाने की होड़ ने भाजपा को पतन के पायदान पर कदम रखवा ही दिया। एक तरफ इनके विधायक बागी हो रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ जमीनी स्तर का कार्यकर्ता इनसे मुँह फेर रहा है।
इन सारे सियासी ड्रामे के बीच आप अगर अखिलेश यादव को गौर से देखें तो वो एक निपुण बगुले की तरह 2027 की चुनावी मछली का शिकार करने की रणनीति बना रहे हैं। हँसते मुस्कुराते मीडिया की भी चुटकी ले लेते हैं और अपने लोगों को अनुशासित करते हुए सरकार बनाने का ब्लूप्रिंट भी तैयार कर रहे हैं।
कुल मिला कर ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर समय रहते भाजपा ने अपने घर के क्लेश को खत्म नहीं किया तो 2027 में साइकिल की रफ़्तार के आगे टिक पाना मुश्किल होगा।